काव्यांतर
Tuesday, May 29, 2012
कुछ ख्वाब
कुछ ख्वाब इस तरह जहन में है ....
के खुली आंखे भी मुंदने लगी |
कुछ ख्वाब इसकदर टूटे ..
के दिनमें भी दोस्तों ने कहा ... नींद तेरी पूरी ना हुई |
अब कोई बताये दोस्तों .. दिन है या सुबह ...
हकीक़त है ये ,या वोही अधुरा ख्वाब |
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