Wednesday, April 18, 2012

मुसाफिर

मुसाफिर बनकर आऐ इस जन्नत पर ,
करवाओं के साथ चलकर राहे कांटी अबतक |

कुछ साथी ऐसे मिले .. लागा पड़ाव आ पहुंचा ,
पर सुबह होते .. हम थे वही और कारवां निकल पड़ा |

अब कोई आस मंजिल की नहीं दूर तक ...
हर हमराही से बस इतनाही पूछते है ....

क्यूँना और कुछ देर पहले मिलते ....
मोड़ पर राह बदलनेसे पहले कुछ वक्त और बिताते |

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